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गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

बीमा सुधार- बदलाव के रास्ते पर ।

बीमा सुधार- बदलाव के रास्ते पर
 भारत में बीमा उद्योग 250 अरब डॉलर का है जो देश के विदेशी मुद्रा भंडार के 4/5वें हिस्से के बराबर है। लेकिन बीमा संशोधन विधेयक पारित होने में अभूतपूर्व देरी के कारण इसके विकास में बाधा पड़ी है। बीमा विधेयक को 10 वर्ष बाद हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया।
 जीवन बीमा के अगले 10 वर्षों में हर वर्ष 12 प्रतिशत की दर से और सामान्य बीमा के 22 प्रतिशत की दर से बढ़ने की संभावना है क्योंकि बीमा में निवेश दुनिया में होने वाले निवेश की तुलना में काफी कम है। लेकिन रास्ते में जो अड़चन है वह है नई पूंजी, खासतौर से विदेशी पूंजी निवेश, जो तभी संभव है जब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाया जाए। बीमा संशोधन विधेयक ने एफडीआई की सीमा वर्तमान 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करके निश्चित रुप से यह काम किया है।
 उद्योग के लिए पिछले तीन वर्ष चुनौतीपूर्ण रहे हैं क्योंकि जीवन बीमा प्रीमियम में नकारात्मक वृद्धि देखने को मिली और गैर जीवन लाभप्रदता में काफी चुनौतियां आई हैं। यह वृहद आर्थिक कारकों के मिश्रण और बीमा उद्योग में मौजूद ढांचागत चुनौतियों से चालित है। भारतीय उद्योग परिसंघ का मानना है कि उद्योगपतियों की सम्मिलित कार्रवाई से इसे पलटा जा सकता है। बीमा संशोधन विधेयक नियामक सुधार भी लाया है।
 सीआईआई ने ग्लोबल कंसलटेंसी फर्म मैकेन्ज़ी के साथ एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें कहा गया है कि भारत में बीमा उद्योग अपने विकास में बदलाव के बिन्दु पर है। सरकार के सुधारात्मक अभियान और प्रतिबद्धता के साथ, उद्योग अगले दशक तक उपभोक्ता केन्द्रित और मूल्य सृजन बनकर इस दूरदर्शिता को हासिल कर सकता है। समग्र विकास से भारत दुनिया के 10 शीर्ष बीमा बाजारों में से एक होगा जहां लिखित सकल प्रीमियम का आकार 250 अरब डॉलर होगा।
 भारत में जीवन बीमा कवर में निवेश की स्थिति बहुत खराब है और यह आबादी का 1 प्रतिशत से भी कम है। इस क्षेत्र को निजी क्षेत्रों के लिए खोलने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 1990 के दशक के अंत में 26 प्रतिशत करने के साथ ही जीवन बीमा कवर 2012 तक आबादी के 3.7 प्रतिशत से अधिक तक पहुंच गया। एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने के साथ ही आजीवन बीमा कवर करीब दोगुना होकर अगले पांच वर्ष में आबादी का 6 प्रतिशत और 2025 तक 10 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा। यह कहना सही नहीं होगा कि इस क्षेत्र को खोलने से सरकार के स्वामित्व वाला भारतीय जीवन बीमा निगम कमजोर हुआ है। सच्चाई तो यह है कि इसके खुलने से एलआईसी को मदद मिली क्योंकि इस क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकियां आई और प्रतिस्पर्धा ने सरकारी संगठऩ को अधिक आक्रामक बना दिया। जीवन बीमा पर एलआईसी का वार्षिक प्रीमियम 19000 करोड़ रुपए से बढ़कर शताब्दी के अंत तक 3.64 लाख करोड़ हो जाएगा।

मिशन इंद्रधनुष

मिशन इंद्रधनुष
(90% बच्चों को अगले पांच वर्षों 2020 तक यह टीका लगाना है )
टीकाकरण बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में एक कारगर हथियार साबित हुआ है। दुनिया के सभी देशों में चुनिंदा टीकाकरण कार्यक्रमों के जरिये उच्च जोखिम वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं, शिशुओं और बच्चों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। टीकाकरण कार्यक्रम में टीकों की संख्या अगल-अगल देश में भिन्न-भिन्न होती है। दुनिया के अधिकांश देशों में डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, पोलियो, खसरा और हेपेटाइटिस-बी जैसी बीमारियों के खिलाफ कुछ चयनित टीके लगाए जाते रहे हैं जो नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के हिस्सा हैं।
 किफायती टीकाकरण कार्यक्रम कारगर साबित हुए हैं। हालांकि इन टीकाकरण कार्यक्रमों का लाभ कई उन बच्चों को नहीं मिल पा रहा है जो उच्च जोखिम वाली बीमारियों की गिरप्त में होते हैं। इन टीकाकरण कार्यक्रमों से वंचित रहने वालों में उन बच्चों की संख्या ज्यादा है जो विकासशील देशों के होते हैं। तमाम अध्ययनों से इस बात का खुलासा हुआ है कि नियमित टीकाकरण कार्यक्रमों के दायरे से बाहर रहने वाले वे बच्चे होते हैं जिनके माता-पिता अथवा अभिभावक या तो इन मुहिमों से अनभिज्ञ होते हैं या टीकाकरण को लेकर उनके मन में कोई आशंका या भय व्याप्त होता है। जागरूकता अभियान के माध्यम से इन कार्यक्रमों को रेखांकित करना होगा ताकि उनको प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके। साथ ही माता-पिता अथवा अभिभावकों के मन से टीकाकरण कार्यक्रमों को लेकर व्याप्त किसी प्रकार की आशंका या डर को समाप्त किया जा सके।
 भारतीय परिदृश्य
 भारत में हर साल 2.7 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं। करीब 18.3 लाख बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं। कम आय़ अर्जित करने वाले परिवारों के ज्यादातर बच्चे बीमारियों का शिकार होते हैं। भारत में रिकॉर्ड तौर पर 5 लाख बच्चे टीकाकरण से ठीक होने वाली बीमारियों के चलते हर साल दम तोड़ देते हैं। टीकाकरण से ठीक होने वाली बीमारियों के कारण बाल मृत्युदर सबसे अधिक है जबकि भारत के 30 फीसदी बच्चे हर साल पूर्ण टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं। यही कारण है कि एक अनुमान के मुताबिक देशभर में 89 लाख बच्चों को या तो केवल कुछ ही टीके लग पाते या तो कई बिल्कुल ही इससे वंचित रह जाते हैं। भारत में प्रत्येक 3 बच्चों में एक बच्चा यूआईपी के तहत उपलब्ध पूर्ण टीकाकरण का लाभ नहीं ले पाता है। शहरी क्षेत्रों के पांच प्रतिशत जबकि ग्रामीण इलाकों में आठ प्रतिशत बच्चे टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं।
 भारत सरकार ने बाल मृत्यु रोकने के लिए सबसे कम लागत में प्रभावी टीकाकरण शुरू करने का कार्यक्रम चलाया है। भारत का व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम देश में सबसे बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों में से एक है जिसके तहत देश भर के 35 राज्यों में 27,000 वैक्सीन भंडारण इकाइयों के साथ एक व्यापक वैक्सीन वितरण प्रणाली काम कर रही है।
 सर्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यू.आई.पी.)
टीका लगाने की संख्या, लाभार्थियों की संख्या, संगठित टीकाकरण सत्र की संख्या, कवर क्षेत्रों का भौगोलिक प्रसार और विविधता के मामले में यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। डीपीटी, ओपीवी और बीसीजी के साथ जीवन के पहले वर्ष के दौरान सभी बच्चों के टीकाकरण की राष्ट्रीय नीति 1978 में अपनाई गई। इसके तहत एक वर्ष की उम्र तक पहुंचने से पहले ही प्राथमिक टीकाकरण की श्रृंखला को पूरा कर लिया जाता है। प्रारंभिक अवस्था में 80% टीकाकरण करने के मकसद से ईपीआई कार्यक्रम को शुरू किया गया था। सर्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यू.आई.पी.) को 1985 में चरणबद्ध तरीके से शुरू किया गया और 1990 में बच्चों को अनुपूरक तौर पर विटामिन ए देने का कार्यक्रम भी जोड़ा गया।
 यूआईपी के तहत टीकाकरण कार्यक्रम
1. बीसीजी (बैसिल्लस काल्मेट्ट ग्यूरिन) जन्म के समय 1 खुराक (अगर पहले नहीं दिया गया है तो एक साल तक इसे दे सकते हैं)
2. डीपीटी (डिप्थीरिया, पर्टसिस और टेटनस टॉक्साइड) 5 खुराक; पहली तीन खुराक क्रमशः 6 सप्ताह, 10 सप्ताह एवं 14 सप्ताह और दो वर्धक खुराक 16-24 महीने और पांच वर्ष पर दी जाती हैं।
3. ओपीवी (ओरल पोलियो वैक्सीन) 5 खुराक; 1 खुराक जन्म के समय, तीन प्राथमिक खुराक क्रमशः 6, 10 औऱ 14 सप्ताह के अंतराल पर दिए जाते हैं औऱ एक बुस्टर खुराक 16-24 महीने पर दिया जाता है।
4. हेपटाइटिस बी टीका की चार खुराक; 0 खुराक जन्म के 24 घंटे के भीतर दी जाती हैं जबकि तीन 6, 10 और 14 सप्ताह की उम्र में।
5. खसरा की दो खुराकें; पहली खुराक 9-12 महीने पर और दूसरी 6-24 महीने पर दी जाती है।
6. टीटी (टिटनस टॉक्सॉइड) इसकी दो खुराकें दी जाती हैं जिनमें एक 10 की उम्र में जबकि दूसरी 16 वर्ष की उम्र में दी जाती है।
7. गर्भवती महिलाओं के लिए टीटी की दो खुराकें या अगर एक खुराक पहले तीन साल के भीतर टीके लगाए।
8. इसके अतिरिक्त, जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई वैक्सीन) टीका 2006-10 के दौरान चरणबद्ध तरीके से अभियान के रूप में 112 स्थानिक जिलों में शुरू की गई थी और अब इसे नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत शामिल किया गया है।
 भारत ने 2014 में तीन नए टीके की शुरुआत के साथ अपने प्रतिरक्षण कार्यक्रम का विस्तार किया। पूर्ण टीकाकरण का लाभ देश के सभी बच्चों को मिले यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है।
 चुनौतियां
 सभी सकारात्मक परिवर्तनों के बावजूद इस कार्यक्रम में कई चुनौतियां और कमियां अब भी बरकरार हैं। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत टीकों का दायरा जरूरत से कम है और आंतरिक और अंतरराज्यीय स्तर पर अंतर अनुकूलतम स्थिति की ओर इशारा नहीं करते हैं। राज्यों और जिलों के भीतर आंशिक रूप से टीकारण का लाभ लेने वाले और इससे वंचित रहने वाले बच्चों के अनुपात में व्यापक अंतर आ रहा है। आंकड़ों का एकत्रीकरण और रिपोर्टिंग उपानुकूलतम स्थिति को दिखाते हैं तथा बीमारियों की निगरानी प्रणाली में और सुधार किए जाने की जरूरत है। यह इन कारणों का पता लगाने और उन जिलों की पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण है जहां व्यवस्थित टीकाकरण अभियान चलाए की जरूरत है। इसके अलावा, सभी उपलब्ध जीवन रक्षक टीकों के साथ सभी बच्चों तक पहुंचने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत है।
 उपलब्ध ज्ञान और अतीत से सीख लेते हुए लक्षित लाभार्थियों को जीनवरक्षक टीके पहुंचाने में पेश आ रही चुनौतियों को रेखांकित किए जाने की जरूरत है। बीमारियों से निपटने के लिए भारत में प्रयास हो रहा है। हालांकि देश में टीकाकरण का इतिहास बताता है कि अनिच्छा औऱ टीकाकरण की धीमी गति के कारण लोगों के बीच इस मुहिमों को स्वीकृति मिलने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतीत की घटनाओं से सबक लेते हुए और उसका विश्लेषण करते हुए टीकाकरण के प्रयासों का मार्गदर्शन करने के लिए कुछ चीजें निर्धारित की गई हैं।